शुक्रवार, २८ एप्रिल, २०१७

काव्य : समझो मोहब्बत

पहली बार हिंदी और उर्दू शब्दों से काव्य बनाने की कोशिश की है। आशा है, आप सभी को पसंद आये। कुछ गलतियां और कमी दिखाई पड़े तो कृपा करके माफ़ कर देना और मुझे जरूर बता देना।




क्यों करते हैं कुछ लोग मोहब्बत? 
जो इसे समझ तक नहीं पाते ।
बदनाम हो ज़ाती है नाम से मोहब्बत,
जहाँ गलतियाँ ये कर जाते ।।१।।

"हम आपसे करते हैं प्यार",
हैं नहीं ये केवल अलफ़ाज़ ।
बिना जाने मत करो इक़रार,
समझो पहले, भावनाओं की आवाज़ ।।२।।

गुलामी है ये दिलों की,
न केवल हुस्नवालों की ।
ना सोने की ना दौलत की,
बंदगी है ये दिलवालों की ।।३।। 

मोहब्बत है नूऱ-ए-खुदा,
न दूजा कोई, इस से बड़ा ।
आग का दरिया भी, हो आगे खड़ा,
साथ-ए-हमसफ़र, डूब के जाना पड़ा ।।४।।

मत करो अपने पे गुरूर,
मोहब्बत में झुकना है जरूर ।
न हो अगर कोई झुकनेवाला,
खुदा का आशीष, क्या ले पायेगा भला? ।।५।।

होता है यह दिलों का संगम,
दो शरीर नहीं, मिलते यहाँ दो मन ।
ऐसी होती है ये लगन,
जिसमें मीरा भी मगन,
और राधा भी मगन ।।६।।

अभी तो समझो नादाँ यारों, 
कहती है ये दिशाएँ चारो ।
अगर हो दिल, सच्चा और पाक,
मोहब्बत कैसे हो सकती है नापाक? ।।७।।

---- जयराज 



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